Birthday Special: भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले निर्देशक हैं Rajkumar Hirani

0
1026
rajkumar-hirani
Birthday Special: भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले निर्देशक हैं Rajkumar Hirani

Birthday Special: सिनेमा रचनात्मकता की वह विधा है, जिसे गढ़ना या बनना आसान नहीं होता। दरअसल सिनेमा हमारे समाज का आईना होता है, जसमें हमें वह सबकुछ दिखाई देता है, जिसे हम अपने चाल, चरित्र और चेहरे में पढ़ने की कोशिश करते हैं। कैमरे के लेंस से 70 एमएम के पर्दे पर उन दृश्यों को गढ़ना, जो हमारे जीवन का प्रतिबिंब हों या फिर हमारीचिंताओं को, खुशियों को, या फिर हमारे भीतर के राग-द्वेष को, हमारे अहंकार को या फिर हमारे भोलेपन को किसी कैनवास पर चित्रकार की तरह उकेरते हों, हम उन्हें अपना मानकर सहज ही पसंद करते हैं। इसी विधा के माहिर खिलाड़ी हैं फिल्म निर्देशक राजकुमार हिरानी, जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री प्यार से राजू हिरानी कहती है।

फिल्‍म निर्देशक, राइटर और एडिटर राजकुमार हिरानी ने अभी तक कुछ गिनीचुनी फिल्में ही की हैं, लेकिन उनकी सभी फिल्में कलात्मकता और व्यावसायिकता के पैमाने पर सुपरहिट रही हैं। इनमें मुन्‍नाभाई एमबीबीएस,लगे रहो मुन्‍नाभाई,3 इडियट्स,पीके और संजू शामिल हैं।जानेमाने फिल्म निर्देशक विधुविनोद चोपड़ा के कैंप में लगातार सुपरहिट फिल्में देने वाले राजकुमार हिरानी का जन्‍म 20 नवंबर 1962को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ। हिरानी एक सिन्‍धी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता का नाम सुरेश हिरानी और मां का नाम शीला हिरानी है। राजकुमार हिरानी के एक भाई और एक बहन हैं।

पाकिस्तान के सिंध प्रांत का रहने वाला है परिवार

राजकुमार हिरानी का परिवार मूलतः पाकिस्तान के सिंध प्रांत का रहने वाला है. भारत-पाकिस्तान विभाजन की पीड़ा झेलने वाला हिरानी परिवार अपने जीवटता के बल पर संघर्ष के रास्ते भारत में दाखिल होता है। न सिर पर छत थी न पेट में जाने के लिए दो वक्त के निवाले का इंतजाम था। राजकुमार हिरानी बताते हैं कि बंटवारे के वक्त उनके पिता सुरेश हिरानी की उम्र 14 साल की थी, जब वो राजकुमार हिरानी के दादा-दादी और दो चाचाओं और पांच बुआ के साथ भारत आए थे।टुकड़े में बंट चुके हिंदोस्तान की आबोहवा सुरेश हिरानी को रास न आयी और जल्द ही सुरेश हिरान के पिता और सबसे बड़े भाई का निधन हो गया।

अब पूरे परिवार की जिम्मेदारी राजकुमारहिरानी के पिता सुरेश के कंधों पर आ गई। परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सुरेश हिरानी को यूपी के फिरोजाबाद में एक चूड़ी कारखाने में काम करना पड़ा।लेकिन कुछ मन जमा नहीं तो थोड़े समय के बाद सुरेश हिरानी पूरे कुनबे के साथ नागपुर आकर बस गये। न कोई नौकरी न कोई रोजगार आखिर परिवार को पालेंगे कैसे। यह बड़ा सवाल सुरेश हिरानी के सामने खड़ा था। फिर मां के कहने पर सुरेश ने सिर्फ दो टाइपराइटर के साथ एक टाइपिंग इंस्टीट्यूट खोला। इसी टाइपिंग इंस्टीट्यूट से सुरेश हिरानी अपने परिवार का गुजारा करते रहे।

हिरानी ने कॉमर्स से अपना ग्रेजुएशन किया

सुरेश हिरानी ने राजकुमार को शुरूआती पढ़ाई के लिए नागपुर के सेंट फ्रांसिस डीसेल्‍स हाईस्‍कूल में दाखिला दिलवा दिया। वहां से पास होने के बाद हिरानी ने कॉमर्स से अपना ग्रेजुएशन किया. परिवार की तमन्ना थी कि राजकुमार हिरानी चाटर्ड अकाउंटेंट बने लेकिन बचपन से ही राजकुमार हिरानी का लगाव थियेटर और फिल्‍मों की ओर था। अक्सर वो अपने पॉकेट मनी से पैसे बचा कर फिल्में देखते थे और थियेटर की टिकटें खरीदा करते थे। सिनेमा और रंगमंच ने राजकुमार हिरानी को इस कदर अपनी ओर खिंचा कि वो दिनरात एक्टर बनने का सपना देखने लगे।

जब एक्टिंग स्कूल में नहीं मिला एडमिशन

हिरानी को फिल्‍मों में एक्टर बनने का शौक इस कदर था कि वो कॉलेज के दिनों में थियेटर करने लगे। पिता सुरेश हिरानी राजकुमार हिरानी को चाटर्ड अकाउंटेंट बनाना चाहते थे लेकिन अपनी जिद पर नहीं, राजकुमार की इच्छा पर और जैसा की राजकुमार ने पहले से तय कर लिया था कि उन्हें सिनेमा में एक्टर बनना है। एक दिन खुद पिता सुरेश हिरानी ने बेटे राजकुमार की कुछ तस्वीरें शूट की और उन्हें मुंबई के एक एक्टिंग स्कूल में दाखिले के लिए भेज दीं लेकिन एक्टिंग स्कूल ने राजकुमार हिरानी को दाखिला देने से मना कर दिया। स्कूल की ओर से भेजे खत में लिखा था कि आपके बेटे में एक्टर बनने का चार्म नहीं है। उसे कुछ और सोचना चाहिए क्योंकि इस फिल्ड में लुक बहुत मायने रखता है। खैर राजकुमार हिरानी को उस एक्टिंग स्कूल में एडमिशन नहीं मिला. राजकुमार हिरानी उस बात से बहुत निराश हुए और धीरे-धीरे अवसाद की ओर बढ़ने लगे। लेकिन मन में कहीं न कहीं सिनेमा का पर्दा इतने भीतर तक धंस गया था कि वो निकाले न निकल रहा था।

राजकुमार को इस हात में देखकर पिता सुरेश भी परेशान रहने लगे कि आखिर अब क्या करें राजकुमार का। कौन सी लाइन पकड़ाएं कि फिल्म से उनका कनेक्शन हो सके। तभी सुरेश हिरानी को उनके चाइपिंग की दुकान पर किसी ने पुणे की एफटीआईआई के बारे में बताया। सुरेश हिरानी को एफटीआईआई के बारे में उतनी जानकारी नहीं थी, लेकिन अगले कुछ दिनों में उन्होंने उसके बारे में पुख्ता जानकारी इकट्ठा की और फिर राजकुमार हिरानी को सलाह दी कि वो पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट (एफटीआईआई) में ट्राई करें। राजकुमार हिरानी फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, पुणे का फॉर्म भरा और वहां उनका दाखिला हो गया। एटीआईआई में भी राजकुमार हिरानी एक्टिंग में डिप्लोमा करना चाहते थे, जो कि एक साल का होता है। लेकिन उसके फॉर्म की डेट खत्म हो गई थी तो राजकुमार ने मजबूरी में फिल्म एडिटिंग के तीन साल के कोर्स में एडमिशन लिया. राजकुमार हिरानी के उस वक्त मजबूरी में लिए गए उस फैसले ने आज उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा दिया है.

1987 में राजकुमार हिरानी ने एफटीआईआई से फिल्मएडिटिंग में अपना डिप्लोमा लिया

साल 1987 में राजकुमार हिरानी ने एफटीआईआई से फिल्मएडिटिंग में अपना डिप्लोमा लिया और उसके बाद वो पहुंचे मायानगरी यानी मुंबई। पिता सुरेश हिरानी ने फिल्म कोर्स करते वक्त राजकुमार से वादा किया था कि वो जब कोर्स पूरा कर लेंगे तो वह मुंबई में एक फ्लैट खरीदकर उन्हें गिफ्ट देंगे, लेकिन पैसे के अभाव के कारण सुरेश हिरानी ऐसा नहीं कर पाए। तबराजकुमार हिरानी को मुंबई में रहने का ठिकाना दिया उनके एफटीआईआई के ही दोस्त श्रीराम राघवन ने। राघवन राजकुमार से पहले से मुंबई पहुंच चुके थे और डायरेक्शन की दुनिया में अपने कदम आजमा रहे थे। राजकुमार के साथी राघवन ने कई सालों के बाद ‘एक हसीना थी’ और ‘जॉनी गद्दार’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया।

मुंबई में काम की तलाश में राजकुमार हिरानी इधर-उधर भटकते रहे। लेकिन फिल्म में काम करना तो दूर कोई उनसे मिलने को भी नहीं तैयार होता और अगर कोई फिल्म इंस्टिट्यूट के नाम पर मिल भी लेता तो पुणे की डिप्लोमा फिल्म देखने के बाद तारीफ तो करता लेकिन काम नहीं देता। कुल मिलाकर राजकुमार की हालत खराब होने लगी। पिता सुरश ने अपने बल पर पांच बहनों की शादी की, बच्चों को पढ़ाया लिखाया तो वह भी उस स्थिति में नहीं थे कि मुंबई में राजकुमार को स्ट्रगल के लिए पैसे भेज सकें तो उनके कुछ दोस्तों ने सुझाया कि वो विझापनों की दुनिया में क्यों नहीं ट्राई करते। पहले तो राजकुमार हिरानी ने विज्ञापन करने से मना कर दिया लेकिन जब रोजमर्रा की जिंदगी में संघर्ष बढ़ने लगा तो उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया। 90 के दशक के सैकड़ों विज्ञापन राजकुमार हिरानी के एडिट टेबल से होकर दर्शकों तक पहुंचे। उनमें से करीब 15 विज्ञापनों में राजकुमार हिरानी ने पर्दे के पीछे ही नहीं पर्दे के सामने भी काम किया। इसमें सबसे फेमस विज्ञापन है फेविकोल का। जी हां, फेविकोल के विज्ञापन की वो पंच लाइन याद करिये  ‘फेविकोल ऐसा जोड़ लगाए, अच्छे से अच्छा न तोड़ पाए’।

विज्ञापनों की दुनिया में कमाया नाम

विज्ञापनों की दुनिया में नाम कमाने के बाद राजकुमार हिरानी अब फिल्मों की दुनिया में काम करने की हसरत पाले साल 1993 में एक दिन जा पहुचें अपने एफटीआईआई के सीनियर और परिंदा जैसी मशहूर फिल्म के डायरेक्टर विधुविनोद चोपड़ा के पास। चूंकि राजकुमार हिरानी ने तब तक कई बेहतरीन विज्ञापनों की एडिटिंग कर चुके थे, विधु ने उन्हें सीधे अपनी फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’के प्रोमे बनाने का काम राजकुमार हिरानी के हवाले कर दिया। यह फिल्म साल 1994 में सिनेमाघरों में आयी। फिल्म ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ को रेनू सलूजा ने एडिट किया था, जो विधुविनोद चोपड़ा की पत्नी थीं। बाद में रेनू ने विधु से तलाक ले लिया और साल 2000 में कैंसर से इतनी मौत हो गई। रेनू भी विधु के साथ एटीआईआई में एक ही बैच में पढ़ी थी और उन्होंने भी राजकुमार हिरानी के काम को बहुत सराहा था। इसके बाद विधु का राजकुमार पर भरोसा बढ़ा और उन्होंने साल 1998 में विधु की एक और फिल्म ‘करीब’ में भी प्रोमो एडिटर के तौर पर काम किया। इस फिल्म को भी रेनू सलूजा ने ही एडिट किया था।

इसके बाद रेनू और विधु के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और रेनू फिल्ममेकर सुधीर मिश्रा के नजदीक चली गईं। तब साल 2000 में विधु विनोद चोपड़ा नेअपनी फिल्म ‘मिशन कश्मीर’के एडिट की पूरी जिम्मेदारी राजकुमार हिरानी के कंधे पर डाल दी। यह फिर्म भी सुपरहीट रही और इस फिल्म के बाद राजकुमार हिरानी पूरी तरह से विधु कैंप में शामिल हो गये और वो भी बतौर एडिटर। साल 2001 में राजकुमार हिरानी ने फिल्म ‘तेरे लिए’ कोएडिट किया लेकिन राजकुमार हिरानी ने सफलता के कदम साल 2001 में उस दिन चुमा, जब उन्होंने विधु को एक लंपट टपोरी की कहानी सुनाई जो फर्जी डॉक्टर होते हुए भी लोगों को उनके परेशानियों से बाहर निकालने का काम करता था। जी हां, वो स्क्रिप्ट थी फिल्म थी ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ की। साल 2003 में सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली इस फिल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान लिखे। इस फिल्म ने संजय दत्त की खराब छवि को नये सिरे से पॉपुलर बनाने में मदद की। ये पहली फिल्म थी जिसमें समय दत्त के पिता सुनील दत्त ने फिल्म में भी उनके किरदार का रोल प्ले किया।

महान अभिनेता सुनील दत्त की यह आखिरी फिल्म थी। फिल्म इंडस्ट्री में अरशद वारसी और संजय दत्त की जोड़ी ने तहलका मचा दिया।  फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों का वारान्यारा किया और इस तरह से राजकुमार हिरानी पर लगा सफलता का ठप्पा औऱ वो भी पहली ही फिल्म में। फिल्म‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ पर आधारित 4 और रिमेक बना और वो भी भारत की अलग-अलग भाषाओं में। इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड के साथ-साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। इस फिल्म के जरिये राजकुमार हिरानी ने ‘मामू’ शब्द को घर-घर तक पहुंचा दिया और आज भी लोगों का तकिया कलाम बना हुआ है ‘मामू’। हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की एक रचना है ‘गुंडा’। बनारस के गुंडा पर लिखी जयशंकर प्रसाद की रचना का मुख्य किरदार नन्हकू सिंह गुंडा होते हुए समाज के कथित सभ्य लोगों से ज्यादा इमानदार है। कुछ उसी तरह का चरित्र मुन्ना भाई का भी है राजकुमार हिरानी की इस फिल्म में।

फिल्म लगे रहो मुन्नाभाई से मिली पहचान

फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ की सफलता के बाद तीन साल बाद राजकुमार हिरानी ने साल 2006 में उसी मुन्नाभाई को एक नये कलेवर के साथ पेश किया। फिल्म का नाम था ‘लगे रहो मुन्नाभाई’। फिर से संजय दत्त और अरशद वारसी की जोड़ी ने कमाल कर दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गांधीवाद को गांधीगिरी में बड़े करीने से ढालने वाले राजकुमार हिरानी ने दर्शकों के मन में ऐसा कैमिकल लोचा किया कि लोगों के जहन में आज भी उस फिल्म के एक-एक किरदार घर किये हुए हैं। बापू के सत्य और अहिंसा के दर्शन और आर्दश को पीछे छोड़कर यह देश जिस रफ्तार से आधुनिकता की अंधी दौड़ में भाग रहा है। 4 नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित राजकुमार हिरानी की फिल्म यह दिखाती है कि गांधी के विचारों से प्रभावित होकर असल जिंदगी में केवल खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे पठान अपनी लड़ाकी कौम के साथ लालकुर्ती आंदोलन नहीं कर सकता बल्कि फिल्म में भी कोई मुन्ना नाम का किरदार हो सकता है, जो लकी सिंह को ‘गेटवेल सून’ के साथ बापू के धर्म का मर्म समझा सकता है। फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ की कथानक की हल्की सी झलक साल 1957 में बनी वी शांताराम की फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ में भी दिखाई देती है। 

80 के दशक के मध्यांतर से हिंदी सिनेमा के मूल्यों में जिस तरह की गिरावट दर्ज की गई, अश्लीलता के साथ भौंडेपन का इस तरह से मिश्रण किया गया कि लोग परिवारों के साथ हिंदी सिनेमा देखने से कतराने लगे थे, राजकुमार हिरानी की फिल्मों ने हिंदी दर्शकों को बीच साफ-सुथरी फिल्म के भरोसे को एक बार फिर से जगा दिया। यही कारण है कि हिंदी सिनेमा के दर्शकों की उम्मीद पर हर बार खरे उतरना राजकुमार हिरानी के बड़ा चैलेंज हो गया। लेकिन कहते हैं न कि जब अच्छे लोगों का साथ या अच्छी टीम कुछ करने की ठान ले तो वो हर हाल में अच्छा ही करती है। कुछ-कुछ वैसा ही संयोग राजकुमार हिरानी के साथ भी हुआ। 

‘3 इडीयट्स’ ने किया था कमाल

साल 2009 में राजकुमार हिरानी ने चेतन भगत के प्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यास ‘फ़ाइव प्वांइट समवन’ पर आधारित फिल्म ‘3 इडीयट्स’ दर्शकों के सामने पेश की। ‘काबिल बनो, कामयाबी झक मारकर पीछे भागेगी..’ इस बात को हम सभी जानते हैं लेकिन राजकुमार हिरानी ने फिल्म के जरिये कहा और वो भी अपने अंदाज में। अगर महसूस करें तो एक ‘रैंचो’हम सभी के भीतर बसता है लेकिन समाज का ऐसा दबाव होता है की हम चाहकर भी उसे समाने नहीं ला पाते हैं। वैसे एक सच्चाई यह भी है कि चतुरराम लिंगम का किरदार भी हमारे खुद के भीतर छुपा होता है, जिसे हम बड़ी ही खामोशी के साथ समय-समय पर सामने लाते भी रहते हैं। यही नहीं असल सच तो यह है कि जिंदगी में हमारा मूल किरदार कहीं गुम हो जाता है और हम भी ‘वायरस’ सरीखे हो जाते हैं। खैर इस फिल्म ने सफलता के सारे प्रतिमान तोड़े और 6 फिल्मफेयर अवॉर्ड के साथ 3 नेशनल अवॉर्ड भी इस फिल्म के खाते में दर्ज हुए।

इसके बाद साल 2014 में एक अतरंगी किरदार ‘पीके’ को लेकर राजकुमार हिरानी सिनेमाघरों में आते हैं। दर्शक इस फिल्म को भी हाथों-हाथ लेते हैं। आज के वक्त में हम किस तदर अंधविश्वास और बाबा जी के कृपा बरसने के चक्कर में फंसते जा रहे हैं, इसे हम खुद भी नहीं समझ पाते। आज जब कोई कहता है जलेबी खाने से शुगर ठीक हो सकता है और कोई माइकल जैक्सन का चोला ओढ़े खुद को बाबा होने का क्लेम करने लगता है तो लगता है कि समाज की चेतना वाकई मर चुकी है। ऐसे दुविधा के समय में अपनी बात को कहने के लिए राजकुमार हिरानी एक परग्रही पीके को जमीन उतारते हैं, जो धर्म में फैले पाखंड पर जबरजस्त चोट करता है।

डंके की चोट पर खुद को विश्वगुरू कहने वाले हम लोग आज 21वीं सदी के बाद भी जब कंडोम को सामाजिक तौर पर स्वीकार करने में झिझक रहे हैं तब उस समय ‘पीके’ हमें बताता है जिंदगी सरल तरीके से जीनी है। हमारे समाज की कितनी बड़ी विडंबना है कि एक बाबा पीके के जान का दुश्मन बन जाता है और वो भी सिर्फ इसलिए वो उसके यंत्र को शिवजी का मनका बताकर बेइमानी से हड़पना चाहता है, वहीं दूसरी ओर इस सभ्य समाज के मुंह पर जोरदार तमाचा मारती है वह कोठे वाली जो अपना काम इमानदारी से करती है और पीके को साथ पूरी रात गुजारती है। फिल्म में कितना ही सत्य दिखाया गया है कि बाबा और कोठेवाली अपना-अपना काम कर रहे हैं लेकिन बाबा का छद्मवेश उतना ही दूषित नजर आता है जितना कोठेवाली की कार्यशैली स्वच्छ है।

साल 2018 में हिरानी ने संजय दत्त की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘संजू’को लेकर दर्शकों के सामने हाजिर हुए

फिल्म अभिनेता संजय दत्त के साथ निर्देशन के क्षेत्र में पहली बार उतरे राजकुमार हिरानी को संजय दत्त की असल जिंदगी भी किसी सिनेमाई किरदार से कम नहीं लगी। यही कारण है कि साल 2018 में हिरानी संजय दत्त की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘संजू’को लेकर दर्शकों के सामने हाजिर हुए, लेकिन ‘संजू’ उनके अन्य फिल्मों की तुलना में कमजोर कथानक और पटकथा के कारण उस तरीके से सफल नहीं रही, जैसी की उनकी अन्य फिल्में रहीं। आज नहीं लेकिन आने वाले समय में राजकुमार हिरानी यह स्वयं स्वीकार करेंगे कि ‘संजू’ बनाकर उन्होंने शायद एक भूल की। खैर दोस्ती में की गई उस फिल्म को दर्शकों ने भी उसी तरह से देखा। इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे दर्शक कुछ हासिल कर सकें।

राजकुमार हिरानी ने दिसंबर 1994 में मंजीत से शादी की

खैर इस बात में कोई शक नहीं कि अपनी फिल्मों के लिए नेशनल अवॉर्ड सहित 11 फिल्मफेयर अवॉर्ड जीत चुके राजकुमार हिरानी हमारे समय के बेहतरीन फिल्म निर्देशकों में से एक हैं। ‘मेरा नाम जोकर’ में लगे घाटे के बाद हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन राज कपूर ने कहा था कि सिनेमा का पर्दा बड़ा बेदर्द होता है, देता है तो बहुत कुछ और लेता है तो सब कुछ। सिनेमा बनाना कितना कठिन काम है उसे इसी बात से समझा जा सकता है कि जिस फिल्मी गानों से जाने माने गीतकार शैलेंद्र को शोहरत मिली आखिरकार उसी सिनेमा ने उनकी जान भी ले ली। जोखिम भरा काम है और इसमें राजकुमार हिरानी जैसे लोग इसलिए सफल हैं क्योंकि उन्हें मनोरंजन की विधा का सभी नापतौल मालूम है। वैसे राजकुमार हिरानी की सफलता में उनकी पूरी टीम जिसमें अभिजात जोशी, स्वानंद किरकिरे, शांतनु मोइत्रा के साथ साथ उनके सीनियर विधुविनोद चोपड़ा का भरपूर समर्थन है। राजकुमार हिरानी ने दिसंबर 1994 में मंजीत से शादी की। मजीत इंडियन एयरलाइंस की पायलट हैं।

यह भी पढ़ें: Hema Malini और Prasoon Joshi को ‘इंडियन फिल्म पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड से किया जाएगा सम्मानित

Happy Birthday Sushmita Sen: जानिए कैसे Sushmita को 30 साल के Rohman Shawl से प्यार हो गया, बेहद दिलचस्प है लव स्टोरी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here