क्या Abbas Ansari बचा पाएंगे अपने पिता Mukhtar Ansari की सियासी विरासत? Mau Sadar पर रहेगी सबकी नजर

अब्बास अंसारी के खिलाफ भाजपा ने मुख्तार के कट्टर विरोधी ठाकुर बिरादरी के जुझारू युवा अशोक कुमार सिंह को टिकट दिया है। वहीं बसपा ने क्षेत्र में राजभर बिरादरी के संख्या बल को देखते हुए पुराने सिपहसालार भीम राजभर पर ही भरोसा जताया है। कांग्रेस ने युवा चेहरे माधवेंद्र बहादुर को मैदान में उतारा है।

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Abbas Ansari
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Abbas Ansari: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के सातवें चरण में पूर्वांचल की मऊ सदर सीट (Mau Sadar Seat) पर सबकी नजर हैं। सातवें चरण में यहां 7 मार्च को मतदान होना है। लेकिन इस बार यहां के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। बता दें कि मुख्तार अंसारी 1996 से मऊ से विधायक रहे हैं। मुस्लिम बहुल इस विधानसभा सीट पर सपा गठबंधन में शामिल सुभासपा के टिकट पर निवर्तमान विधायक मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी मैदान में हैं।

अब्बास अंसारी के खिलाफ भाजपा ने मुख्तार के कट्टर विरोधी ठाकुर बिरादरी के जुझारू युवा अशोक कुमार सिंह को टिकट दिया है। वहीं बसपा ने क्षेत्र में राजभर बिरादरी के संख्या बल को देखते हुए पुराने सिपहसालार भीम राजभर पर ही भरोसा जताया है। कांग्रेस ने युवा चेहरे माधवेंद्र बहादुर को मैदान में उतारा है।

गौरतलब है कि भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, बसपा के भीम राजभर अनुभवी हैं। 2012 के चुनाव में उन्होंने कड़ी चुनौती पेश की थी। माधवेंद्र सिंह का यह पहला चुनाव है। उनके पिता सुरेश बहादुर सिंह राजनीतिक दांवपेच जानते हैं। सदर विधानसभा सीट पर 1996 से 2017 तक लगातार पांच चुनाव जीतने वाले मुख्तार के लिए कोई दल या किसी पार्टी का समर्थन का मुद्दा महत्व नहीं रखता है। वह 2002 और 2007 में निर्दलीय भी चुनाव जीत चुके हैं।

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कौन हैं Abbas Ansari?

अब्बास अंसारी शॉटगन निशानेबाज हैं। अब्बास ने अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीते हैं वह अपराधी से राजनेता बने मुख्तार अंसारी के बड़े बेटे हैं। अब्बास निशानेबाजी में तीन बार राष्ट्रीय चैंपियन बने और कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भारतीय टीम के साथ रहे हैं। अब्बास अंसारी डॉ मुख्तार अहमद अंसारी के परपोते हैं, जो एक भारतीय राष्ट्रवादी और राजनीतिक नेता थे, और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के पूर्व अध्यक्ष थे।

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वो जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक थे। वे 1928 से 1936 तक इसके चांसलर रहे।अब्बास के पिता एक जाने माने अपराधी से राजनेता बने मुख्तार अंसारी, चाचा अफजल अंसारी और सिबकतुल्लाह अंसारी भारतीय राजनीति में बहुत सक्रिय रहे हैं और उत्तर प्रदेश विधान सभा में विभिन्न पदों पर रहे हैं।

क्या पिता के साम्राज्य को बचा पाएंगे Abbas Ansari?

बता दें कि मऊ के मौजूदा विधायक मुख्तार अंसारी ने 2017 के चुनाव में यहां से बसपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। 1996 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे मुख्तार फिलहाल बांदा जेल में बंद हैं। उन्हें जनवरी 2019 में जबरन वसूली के एक मामले में पंजाब की रूपनगर जेल में बंद किया गया था और अप्रैल 2021 में बांदा स्थानांतरित कर दिया गया था।

मुख्तार ने पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से चुनाव जीता था। उन्होंने 2002 और 2007 के चुनावों में एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सीट बरकरार रखी। उन्होंने 2010 में कौमी एकता दल बनाया और 2012 में चुनाव जीता। 2017 के चुनावों से पहले, उन्होंने मायावती की बसपा के साथ पार्टी का विलय कर दिया। पिछले साल, बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि उनकी पार्टी चुनाव में ‘बाहुबली’ या माफिया उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारेगी और घोषणा की थी कि मुख्तार अंसारी को फिर से मऊ से पार्टी का टिकट नहीं दिया जाएगा।

Mukhtar Ansari
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यूपी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, मुख्तार अंसारी के खिलाफ विभिन्न एमपी/एमएलए अदालतों में 30 से अधिक प्राथमिकी और हत्या के जघन्य अपराधों सहित 14 से अधिक आपराधिक मुकदमे और गैंगस्टर अधिनियम के तहत लंबित हैं। इस बार के चुनाव में अब्बास अंसारी पर पिता के साम्राज्य बचाने की भी जिम्मेदारी है। मऊ में सातवें और आखिरी चरण में सात मार्च को मतदान होगा।

Mukhtar Ansari की राजनीतिक कैरियर

अगर मुख्तार अंसारी की राजनीतिक कैरियर की बात की जाए तो 1990 के दशक की शुरुआत तक, मुख्तार अंसारी को उनकी कथित आपराधिक गतिविधियों के लिए जाना जाता था। खासकर मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर जिलों में उनका बोलबाला था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र संघ से जुड़ कर 1995 के आसपास राजनीति में प्रवेश किया। 1996 में विधायक बने और बृजेश सिंह के प्रभुत्व को चुनौती देने लगे।

दोनों पूर्वांचल क्षेत्र में गिरोह के मुख्य प्रतिद्वंद्वी बन गए। 2002 में, सिंह ने कथित तौर पर अंसारी के काफिले पर घात लगाकर हमला किया था परिणामस्वरूप गोलीबारी में अंसारी के तीन लोग मारे गए थे। बृजेश सिंह गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे मृत मान लिया गया। अंसारी पूर्वांचल में गैंग का निर्विवाद नेता बन गया। हालांकि, बाद में बृजेश सिंह को जीवित पाया गया, और झगड़ा फिर से शुरू हो गया।

अंसारी के राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए, सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया। राय ने 2002 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजल अंसारी को हराया। मुख्तार अंसारी ने बाद में दावा किया कि राय ने बृजेश सिंह के गिरोह को सभी ठेके देने के लिए अपने राजनीतिक कार्यालय का इस्तेमाल किया, और दोनों ने उसे खत्म करने की योजना बनाई।

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अंसारी ने गाजीपुर-मऊ क्षेत्र में चुनाव के दौरान अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मुस्लिम वोटबैंक का इस्तेमाल किया। अपराध, राजनीति और धर्म के मिश्रण से इस क्षेत्र में सांप्रदायिक हिंसा के कई उदाहरण सामने आए। ऐसे ही एक दंगे के बाद मुख्तार अंसारी को लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

मऊ सदर विधानसभा का जातिय गणित

मऊ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिम बहुल है। यहां सबसे ज्यादा 1.70 लाख मतदाता मुस्लिम समाज से ही हैं। एससी समाज के करीब 70 हजार मतदाता हैं। यादव के 90 हजार, चौहान समाज के 45 हजार, क्षत्रिय समाज के 45 हजार और वैश्य करीब 21 हजार हैं। बता दें कि यहां की जातिगत राजनीति सिर्फ और सिर्फ एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। यहां मतदाता पार्टी पर नहीं बल्कि मुख्तार अंसारी के नाम पर वोट करती है।

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